न नाम, न पहचान, लेकिन मुल्क मेहरबान... क्या पहली बार पाकिस्तान में इंडिपेंडेंट बनाएंगे वजीर-ए-आजम?
पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला लेकिन इमरान समर्थित निर्दलीयों ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं हैं. कुछ सीटों के नतीजे आने बाकी है लेकिन सबसे ज्यादा 100 सीटें निर्दलीयों ने जीती जिन्हें इमरान समर्थित माना जा रहा है. नवाज शरीफ की पार्टी को 71 सीटें मिली है जबकि सहयोगी पार्टी पीपीपी 53 सीटें जीती. इसी तरह एमक्यूएम चौथी सबसे बडी पार्टी बनी और उसको 17 सीटें मिली. 264 सीटों पर चुनाव हुआ था और बहुमत का आंकडा 134 है.
अब सरकार बनाने के लिए नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टों ने बात शुरू कर दी है. बिलावल और आसिफ जरदारी लाहौर पहुंच गए है. सरकार बनाने को लेकर नवाज शरीफ और इमरान खान की पार्टी में होड़ शुरू हो गई है. नवाज शरीफ ने सरकार बनाने की बात कही तो इसके जवाब में इमरान खान की पार्टी ने भी कहा कि उनके सबसे ज्यादा सांसद जीते हैं इसलिए वो केंद्र में सरकार बनाएगी.
इमरान को नहीं मिल सकेगा कोटा
चुनावी सफलता के बावजूद, इमरान खान की पार्टी पीटीआई को नुकसान भी हुआ है. चुनाव आयोग के फैसले के कारण उनका चुनावी चिह्न 'बल्ला' जब्त हो गया था जिसकी वजह से उनके समर्थित उम्मीदवार निर्लीय चुनावी मैदान में उतरे थे.निर्दलीय उम्मीदवार भले ही सबसे अधिक सीटें जीतने में कामयाब रहे हों लेकिन इमरान की पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी. क्योंकि उसे अल्पसंख्यक सीटों का कोटा आवंटित नहीं किया जाएगा.
ऐसा है रिजर्व सीटों के कोटे का गणित
दरअसल पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 10 सीटें वहां के अल्पसंख्यकों हिंदुओं और ईसाइयों के लिए आरक्षित रहती हैं. नेशनल असेंबली में कुल 336 सीटों में से 266 सीटों पर जनता के वोटों के जरिए सीधे चुनाव होता है और बची हुई 70 सीटें रिजर्व होती हैं जिनमें से 10 सीटें अल्पसंख्यकों (हिंदू और ईसाइयों) तथा 60 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व रहती है.इन सीटों का बंटवारा नेशनल असेंबली में जो दल चुनाव जीतकर आते हैं उनकी जीती गई सीटों के अनुपात में होता है. ऐसे में इमरान को यहां अल्पसंख्यक सीटों का कोटा मिलना नाममुकिन हो गया है.
क्या कभी इतने सारे निर्दलीय उम्मीदवार सांसद चुने गए?
पत्रकार वुसअतुल्लाह खान 'डॉन' से बात करते हुए कहते हैं कि ऐसा बहुत कम हुआ है.हालांकि जनरल ज़ियाउल हक के समय में पूरी संसद निर्दलीयों से बनी थी. उन्होंने बताया, 1985 में गैर-पार्टी आधारित चुनाव हुए थे. किसी भी दल को चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं थी और सभी ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता से चुनाव लड़ा. उन्होंने बताया, 'जाहिर तौर पर हर किसी को किसी न किसी का समर्थन प्राप्त था लेकिन कागज पर वे सभी निर्दलीय थे.' ये जीते हुए कैंडिडेट संसद के पटल पर गए और उन्होंने अपने समूह या पार्टी को पाकिस्तान मुस्लिम लीग का नाम दिया जिसे आज हम पीएमएल-एन या पीएमएल-क्यू कहते हैं.
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यदि पीटीआई समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में सीटें जीतते हैं लेकिन नेशनल असेंबली में आने से इनकार कर देते हैं तो क्या होगा? पत्रकार वुसअतुल्लाह खान कहते हैं, 'यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं होगा. उन्होंने पहले भी ऐसा किया है और आपने देखा है कि उनके साथ क्या हुआ. मुझे नहीं लगता कि वे पिछली बार मिली हार के बाद दोबारा साहसिक प्रयास करेंगे.हालाँकि, यह संभव है कि वे एक समूह बनाने की कोशिश करेंगे और इसे इंसाफ समूह या कोई अन्य नाम देंगे.'
पीटीआई के पास क्या हैं विकल्प
यदि पीटीआई समर्थित उम्मीदवार सबसे बड़ा समूह बनाते हैं, तो क्या पार्टी उन्हें पीटीआई सदस्य के रूप में दावा कर सकती है? पत्रकार ज़र्रार ख़ुहरो ऐसा होने की संभावनाओं को लेकर बहुत आशावादी नहीं हैं. वो कहते हैं, 'कुछ चीजें नियमों और कानून के हिसाब से चलती हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है.'
उन्होंने पार्टी और उसके सामने आने वाली परेशानियों की ओर इशारा करते हुए कहा, 'हमें इसे इमरान खान की बैक-टू-बैक सजा के संदर्भ में देखना होगा. फिलहाल मुझे कोई ऐसा कोई रास्ता नहीं दिखता कि जहां से पीटीआई के लिए राहत होगी, चाहे वे किसी भी नियम का पालन करें या न करें.'
अपने बीच से पीएम चुन सकते हैं निर्दलीय?
क्या पीटीआई से जुड़े निर्दलीय अपने बीच से पीएम चुन सकते हैं? इसका जवाब देते हुए पत्रकार शाहजेब जिलानी कहते हैं कि निर्दलीय रूप से चुनाव जीते हुए उम्मीदवारों के पास यह तय करने के लिए तीन दिन का समय होता है कि क्या वे स्वतंत्र रूप से किसी राजनीतिक दल का समर्थन करना चाहते हैं? या एक समूह के रूप में किसी पार्टी में शामिल होना चाहते हैं.
जिलानी के अनुसार, अगर पीटीआई समर्थित निर्दलीय संसद में सबसे बड़े समूह के रूप में मान्यता चाहते हैं, तो उन्हें मौजूदा राजनीतिक दल में शामिल होना होगा. जिलानी के मुताबिक, 'जिस नाम का उल्लेख किया जा रहा है वह मजलिस वहदत-ए-मुस्लिमीन (एमडब्ल्यूएम) है जो पहले से ही एक पंजीकृत पार्टी है. दो पार्टियों ने पहले स्थानीय सरकार के चुनावों के लिए गठबंधन किया है. अगर वे (निर्दलीय) उस पार्टी में शामिल होते हैं तो उन्हें आरक्षित सीटें भी मिलेंगी और उनकी संख्या और बढ़ जाएगी और फिर वे सदन के नेता के दावेदार हो सकते हैं.'
हालाँकि, उन्होंने कहा कि उन्हें पीटीआई पार्टी लाइन से हटने के लिए विभिन्न दलों से कई तरह के लालच भी दिए जा सकते हैं, लेकिन अगर वह एक पार्टी में एकजुट रहते हैं तो तो उनका एक बड़ा गुट होगा और संसद में उनका काफी प्रभाव होगा.
कैसे होगा नेता विपक्ष का चुनाव
क्या पीटीआई समर्थित उम्मीदवार अपने बीच से विपक्ष का नेता चुन सकते हैं? इसके जवाब में जिलानी ने कहा कि इसके लिए भी पीटीआई को एक राजनीतिक दल में शामिल होना होगा. जिलानी के मुताबिक, 'अगर वे मौजूदा पार्टियों में से एक में एक गुट के रूप में जाते हैं और उनकी संख्या सबसे अधिक है तो फिर जाहिर तौर पर वे सदन के नेता का चुनाव करना चाहेंगे. यदि किसी कारण से वे ऐसा नहीं कर सकते हैं तो फिर दूसरा सबसे अच्छा विकल्प विपक्ष के किसी सदस्य में से नेता को चुनना होगा.
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