2024 Lok Sabha Elections: UP के मुस्लिम वोटर के 'दिल के करीब' तो है कांग्रेस, SP-BSP की लड़ाई में बिगड़ जाता है वोटों का समीकरण

Lok Sabha Decisions 2024: राजधानी लखनऊ के ही एक कस्बे मोहनलालगंज के मोहम्मद सुलेमान कहते हैं की उनके पुरखों ने तो हमेशा कांग्रेस (Congress) को वोट दिया था, लेकिन जब से वह बड़े हुए हैं, तब से वह यही देख रहे हैं कि मुसलमानों के बीच साइकिल का जोर रहता है। उन्हें नहीं याद कि कभी पंजे को वोट दिया हो। कांग्रेस को भी वोट देना चाहते हैं, लेकिन क्या करें वो जीत नहीं सकती। सुलेमान जो कह रहे हैं, राजनीतिक हकीकत भी यही है। पिछले लगभग 35 सालों से मुस्लिम मतदाताओं के बड़े हिस्से पर समाजवादी पार्टी (SP) ने कब्जा कर रखा है। क्या इस बार कोई बदलाव होगा? 1989 के बाद प्रदेश की राजनीति में ऐसा पलटा खाया कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़कर मुलायम के साथ हो लिया और अभी भी वह उनके पुत्र अखिलेश यादव को के साथ ही खड़ा है।
इस बार किसको वोट देंगे इस सवाल के जवाब में लखनऊ के एक मतदाता इकराम कहते हैं कि कांग्रेस का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ है और मुसलमान राहुल गांधी को पसंद करते हैं। ज्यादातर मुसलमान साइकिल और पंजे के साथ ही जाएंगे। वह सवाल कर देते हैं कि आप को मालूम है की सपा कांग्रेस इस बार एक साथ है। यानी मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ ही रहेगा।

1989 के बाद मुस्लिम मतदाताओं ने खाया पलटा


एक दौर था, जब मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के पीछे खड़ा था। लेकिन 1989 के बाद मुस्लिम मतदाताओं ने ऐसा पलटा खाया कि वह कांग्रेस को छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ हो गए और तब से अब तक कांग्रेस सारे प्रयास कर चुकी है कि किसी तरह उसके परंपरागत वोट एक बार फिर उसके साथ लौट आए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है।

इस बार जो बदलाव दिख रहा है मुस्लिम मतदाताओं से बात करने पर वह साफ हो जाता है। मुस्लिम मतदाता दिल से कांग्रेस के साथ हैं और क्योंकि कांग्रेस और सपा का गठबंधन है, इसलिए ज्यादातर उसी के साथ जाने की बात भी करते हैं। लेकिन इन सबके बीच मुस्लिम मतदाताओं की कड़ी नजर इस बात पर भी रहती है कि वह कौन सा और किस दल का प्रत्याशी है, जो बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहा है। फिर वह उसी के साथ हो लेते हैं, जो बीजेपी को हरा पाने की स्थिति में हो। इसलिए राजनीतिक दलों में इस बात को साबित करने की होड़ रहती है कि उनकी पार्टी BJP को हरा सकती है।

इस राजनीतिक दांव पेंच को समझना बहुत आसान नहीं है। 2022 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने एक नई रणनीति बनाई कि पूरे प्रदेश स्तर पर सपा RLD और दूसरे छोटे दलों के गठबंधन के साथ एकजुट होकर जाए, क्योंकि यह आम धारणा थी कि बीजेपी को हराने की स्थिति में वही गठबंधन है।

इसलिए इधर-उधर न देखकर के एकजुट होकर कर सपा RLD गठबंधन के पक्ष में चले जाएं। परिणाम सामने था कि समाजवादी पार्टी गठबंधन को 125 सीट मिली और कांग्रेस और BSP का लगभग सफाया हो गया।

चुनावी आंकड़ों के आकलन से तो पता चल जाता है कि कांग्रेस व बहुजन समाज पार्टी (BSP) के मुस्लिम प्रत्याशियों को उनके ही गांव में मुस्लिम वोट नहीं मिला। क्या यही रणनीति इस बार भी मुस्लिम मतदाता अपनाएंगे। फिलहाल मुस्लिम मतदाताओं के रुख को देखकर तो यही लगता है।


उन्नाव जिले के मोहान कस्बे में एक चाय की दुकान पर बैठे मोहम्मद शहजाद कहते हैं कि कांग्रेस ही देश को बचा सकती है। इसलिए मुसलमान कांग्रेस और सपा के पक्ष में जाएगा। अगर BSP का प्रत्याशी मुस्लिम हुआ, तो क्या करोगे? शहजाद कहते हैं की करना क्या है, वोट तो कांग्रेस और सपा गठबंधन को ही देंगे और किसी को नहीं। कोई भी खड़ा हो जाए।

ठीक यही रुख 2022 के विधानसभा चुनाव में भी मुस्लिम मतदाताओं ने अपनाया था। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में RLD के नेता जयंत चौधरी के NDA में जाने के बाद क्या चुनावी समीकरण बदल जाएंगे?

वास्तव में पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई जिलों में समाजवादी पार्टी का आधार वोट मुस्लिम ही रहा है। RLD , NDA , ?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का दलित मतदाता मजबूती से अपनी पार्टी के साथ खड़ा है और उसकी संख्या भी ज्यादा है। इसलिए कहीं BJP को हराने के चक्कर में मुस्लिम मतदाता बहुजन समाज पार्टी के साथ, तो नहीं चला जाएगा?

यह संख्या इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि अभी एक साल पहले ही हुए निकाय चुनाव में सहारनपुर जैसे मुस्लिम बहुल शहर में मुसलमान मतदाता सपा प्रत्याशी के मैदान में होने के बावजूद बहुजन समाज पार्टी के साथ चला गया था, क्योंकि दलित मतदाताओं की बड़ी संख्या के साथ मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन बसपा प्रत्याशी को मजबूत बनाता था।

यही स्थिति कई निकायों में रही। इसलिए मजबूती के साथ यह कह पाना मुश्किल है कि जहां बसपा का मजबूत प्रत्याशी दिखेगा, वहां कहीं मुस्लिम वोट बसपा की ओर तो नहीं चला जाएगा। यह अलग बात है समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों इस बात से निश्चिंत है कि मुस्लिम मतदाता उनके गठबंधन की ओर ही आएगा और किसी और के साथ जाने का कोई कारण नहीं है।

'BSP BJP की B-टीम'

सपा के एक नेता कहते हैं की कौन मुसलमान नहीं जानता कि बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी की 'बी टीम' है और इसीलिए वह एकजुट होकर के सपा कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में जाने वाला है। सपा का दावा कुछ हद तक सही है, क्योंकि बसपा को लेकर मुसलमानो के मन में तमाम तरह के संदेह हैं। लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम वोटों को लेकर सपा और बसपा के बीच लड़ाई जोरदार होगी।

वास्तव में 1989 के पहले मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के साथ था, लेकिन जब कांग्रेस की केंद्र सरकार की अनुमति से राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास हुआ, तो उसके बाद स्थितियों में बदलाव आ गया। कांग्रेस से बगावत कर निकले वीपी सिंह ने इस मुद्दे को बहुत जोरदार ढंग से उठाया और मुस्लिम मतदाता 1989 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जनता दल के साथ चला गया।

1991 में मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव और जनता दल के साथ गया। लेकिन बाबरी मस्जिद गिरने के बाद 1993 में सपा और बसपा के बीच गठजोड़ हो गया और एकतरफा होकर मुस्लिम मतदाता इस गठबंधन के साथ गया।

1995 में बसपा, मुलायम सरकार से अलग हो गई और मायावती बीजेपी की मदद से खुद मुख्यमंत्री बन गईं। इसके बाद मुस्लिम मतदाताओं को लेकर सपा और बसपा के बीच तलवार खिंची रही। 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता सपा के साथ गया। तब से अब तक मुस्लिम मतदाताओं का रुख सपा के साथ ही रहा है। जहां भी बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी होता है और उसके जीतने की स्थिति होती है, वो मुस्लिम वोट बसपा की तरफ ही गया।

इस बीच कांग्रेस सारे प्रयास करती रही कि मुस्लिम मतदाता एक बार फिर उसके साथ आ जाएं। राजनीति के जानकार शमशाद कहते हैं की कांग्रेस उनके दिल के करीब है, लेकिन कांग्रेस को वोट तो, तभी जा सकता है, जब वह अपने दूसरे पुराने वोट बैंक को भी अपने पाले में फिर से ले आए।

कभी ब्राह्मण और दलित कांग्रेस के साथ हुआ करते थे, लेकिन अब ब्राह्मण बीजेपी के साथ है और दलितों का एक हिस्सा मायावती के साथ। इसलिए मुसलमान अकेले जाकर अपना वोट क्यों बर्बाद करें। मुस्लिम इसलिए भी समाजवादी पार्टी के साथ चला जाता है, क्योंकि वो भी बीजेपी से लड़ाई लड़ रही है। इस चुनाव में क्या होगा? यह लड़ाई बहुत ही रोचक है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस-सपा गठबंधन के साथ जाएगा या कुछ सीटों पर, जहां बसपा चुनाव अच्छा लड़ती दिखेगी, वहां रणनीति में बदलाव भी करेगा। फिलहाल यही लगता है की अगर सपा और कांग्रेस गठबंधन पश्चिम उत्तर प्रदेश में मजबूत लड़ाई लड़ता नहीं दिखा और कुछ सीटों पर बसपा अच्छा लड़ती दिखी, तो मुस्लिम मतदाता BSP के साथ चला जाए, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता सपा कांग्रेस के साथ ही दिख रहा है और वो भी इसलिए क्योंकि इस इलाकें में गठबंधन के पास उसका आधार वोट पहले से ही है।